Chakra balancing

मानव शरीर में स्थित 7 चक्रों से निर्मित ऊर्जा उसे भौतिक शरीर में बाँटती है | चक्रों से सम्बंधित रंगों व उनके बीज मंत्रो के सही संयोजन से सम्बंधित रोगों का उपचार संभव है | अनियंत्रित चक्रों को हीलिंग करके शरीर को स्वस्थ्य व ऊर्जावान बनाये रख सकते है |

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पहला चक्र मूलाधार होता है यह मेरुदंड कि अंतिम हड्डी या गुदाद्वार के पास होता है , इसका रंग लाल होता है | शरीर में इसकी स्थिति रीढ़ का स्थान है ,इसका बीज मंत्र “ लं “ है |

दूसरा चक्र स्वाधिष्ठान होता है यह पेट के पास होता है , इसका रंग नारंगी होता है | शरीर में इसकी स्थिति पेट का स्थान है ,इसका बीज मंत्र “ वं “ है |

तीसरा चक्र मणिपुर होता है यहनाभि के ऊपर होता है , इसका रंग नारंगी होता है | शरीर में इसकी स्थिति नाभि के ठीक पीछे रीढ़ कि हड्डी है ,इसका बीज मंत्र “ रं “ है |

चौथा चक्र अनाहत चक्र होता है यह ह्रदय के बीच में होता है , इसका रंग हरा होता है | शरीर में इसकी स्थिति रीढ़ कि हड्डी है ,इसका बीज मंत्र “ यं “ है |

पाँचवा चक्र विशुद्धि चक्र होता है यह गले में होता है , इसका रंग नीला होता है | शरीर में इसकी स्थिति शरीर के सभी चक्रों के मध्य है ,इसका बीज मंत्र “ हं “ है |

छठां चक्र आज्ञा चक्र होता है यह भौहों के बीच में होता है , इसका रंग हल्का नीला होता है | शरीर में इसकी स्थिति नेत्रों के मध्य है ,इसका बीज मंत्र “ ऊं “ है |

सातवां चक्र सहस्त्रार चक्र होता है यह सिर के ऊपर होता है , इसका रंग बैंगनी होता है | शरीर में इसकी मस्तिष्क के ऊपरी हिस्से के मध्य है ,इसका बीज मंत्र “ ॐ “ है |

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Special thanks to Rudolf Steiner and Jiddu Krishnamurti for providing content.

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